प्रणव मंदिर - ओङ्कार आश्रम

‘‘ओ३म् क्रतो स्मर।’’ - हे जीव तू ओम का स्मरण कर। -


प्रणव मंदिर ओङ्कार आश्रम की स्थापना एवं प्रणव-पूजन-पद्धति के संकलन के संबंध में परमपूज्य महर्षि ओंङ्कारानन्द सरस्वती जी के विचार -

वेद एवम् पुराणों में ओम् की महिमा का प्रचुर मात्रा में वर्णन है। दुर्भाग्यवश भारतीय प्रणव अर्थात ओम् की उपासना की प्राचीन विधि को भूल गये हैं। जिस प्रकार हम वेदों से विमुख हो गये हैं उसी प्रकार वेद उपदिष्ट उपासनाओं को भी खो बैंठे है। इस महत्वपूर्ण बात की ओर परमपूज्य गुरूदेव जी महाराज का ध्यान आकर्षित हुआ। उन्होने अल्प समय में ही मेरी दीक्षा तथा शिक्षा को समाप्त करके अपना परमकल्याणकारी आर्शीवाद प्रदान करते हुए संसार में सेवार्थ विचरण करने हेतु सन् 1950 में इन शब्दों के साथ पृथक कर दिया।

‘‘याद रखो! आत्मा की उन्नति सदा परोपकार और सेवा से होती है। सेवा से पवित्र हुआ आत्मा प्रभु ओंङ्कारेश्वर की ओर झुकता है। प्रणव अर्थात ओम् की उपासना केवल योगियो तक ही सीमित हो गयी है उससे परामात्मा की अन्य संताने लाभान्वित नहीं हो पा रही हैं। इस विद्या का प्रचार कर देना तुम्हारा पुनीत कर्तव्य होगा। प्रभु परमेश्वर तुमसे यदि सेवा ले सके तो मैं कृतार्थ हूँगा।‘‘

बस इन्हीं गुरू आदेश को लेकर सन् 1950 मे ही ओम-जप-समाज की स्थापना करके नैनीताल जिले में मैंने प्रचार आरम्भ कर दिया। प्रणव प्रचार कार्य के साथ ही गुरूदेव के आदेशानुसार रोगियों तथा गरीबों की सेवा भी आरम्भ कर दी। गुरू आदेश के लगभग 19 वर्शो बाद प्रणव मन्दिर की स्थापना ज्येष्ठ पूर्णिमा संवत 2025 वि0 में ग्राम-बैजनाथ पुर पत्रालय - बालापार जनपद गोरखपुर में हो पायी ।

इन 11 वर्षों में चिकित्सा की व्यवस्था के द्वारा जन सेवा का कार्य भी होता रहा तथा नाना प्रकार के रोग-भोग, विघ्न-बाधाएं उपस्थित होती रहीं। प्रभु ओंङ्कारेश्वर ने असीम कृपा करके मेरी तुच्क्ष सेवाओं को स्वीकार किया और मुझे बार-बार गुरू उपदेश को स्मरण कराते हुए यह प्रेरणा मिलने लगी कि अब प्रणव-मन्दिर की स्थापना के पश्चात् प्राचीन प्रणव-पूजन-पद्धति को जन कल्याणर्थ प्रस्तुत किया जाय जिसके फलस्वरूप पौष-शुक्ल 4, सं 2027 वि0 में प्रणव-पूजन-पद्धति को कुछ नवीन ढंग से ठीक करके प्रणव-उपासकों की सेवा में अर्पित किया गया। उस समय, इस पद्धति की इतनी तीव्र आवश्यकता प्रतीत हुयी कि इसका संक्षेप रूप ही शीघ्र दर्शाया जा सका। प्रणव-पूजन-पद्धति ग्रन्थ की भूमिका में भी कई आवश्यक बातें लिख दी गयी हैं। जिसे जिज्ञासु जन उस ग्रन्थ में देख सकते हैं।

महर्षि जी द्वारा रचित कुछ पुस्तकें -


  • हिन्दुस्तान में हिंसा और अहिंसा (प्रतियां समाप्त)
  • क्रिया योग
  • ओंङ्कार-भजनावली (नये भजनों के साथ) डाउन्लोड
  • सुख-दुःख
  • ओंङ्कार-वचनामृत
  • शिवपुराण एवं ओंङ्कारोपासना
  • हम ओम् की उपासना क्यों करें ?
  • परमलक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  • उपासना योग पर एक विचार
  • प्रणव-पूजन-पद्धतिः
  • प्रणव पन्च मालिका
  • नारी-अधिकार, गुण, गरिमा
  • माया-मोह की कथा
  • उतङ्ग ऋषि की कथा
  • वीर पिता का वीर पुत्र की कथा
  • संक्षिप्त प्रणव-पूजन पद्धतिः
  • ईशोपनिषद का सरल संक्षिप्त परिचय
  • वेदो में पुरूष सुक्त
  • वैदिक गन्धर्व और अप्सरायें
  • प्रणव-पूजन-पद्धति की बृहद व्याख्या
  • गौरीशंकर राम के उपासक नहीं ओंङ्कार के उपासक थे
  • एक महत्वपूर्ण पत्र का उत्तर
  • वैदिक-देव शंकर, वेदोक्त, ओंङ्कारोपासना के आादि शिक्षक हैं
  • मैंने क्या देखा
  • भ्रांतिनिवारण
  • ओंङ्कार-चालीसा एवं ओंङ्कार-कवच
  • अथवर्वेद का एक सरल संक्षिप्त परिचय
  • ओम् तथा शिव कृपा
  • समर्पण
  • क्या ओम् की पूजा शास्त्रों द्वारा प्रमाणित है ? (प्रवचन)
  • महर्षि ओंङ्कारनन्द जी की संक्षिप्त जीवन झांकी
  • वैदिक उपदेश
  • संक्षिप्त उपनिषद परिचय
  • प्रश्नोपनिषद
  • मुण्डकोपनिषद
  • केनोपनिषद
  • माण्डूक्योपनिषद
  • An exposition on the yoga of devotion
  • ऊँ की प्रतिमा, फोटो, रूद्राक्ष की माला, शंकर जी एवं महर्षि जी का फोटो

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प्रणव मन्दिर, ओंकार-आश्रम

ग्राम - बैजनाथपुर
पत्रालय - बालापार
जनपद - गोरखपुर (उ0प्र0)

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